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 Attitude shayari 

बेशक मैं खिलाड़ी नया था....

लेक़िन खेल जीतनें के लिए... बेईमानी...... मेरे बस की बात नहीं है…


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तुम.... ज़रा सी कम भी.... खूबसूरत होती....

ख़ुदा क़सम..... फिर भी ज़हर होती.....



पता नहीं ये बीमारी मुझे ही है या सबको....

तेरी याद.... हमें जिंदगी जीनें नहीं देते.... तेरी चाहत..... हमारी मौत.... आने नहीं देती.....



तू पास रहे...... न रहे....

तेरी याद ज़हन में..... अक्सर रहा करती है...



ज़रूरी नहीं... की रिश्ते में.... कोई गलत हो ही .....'मैकू'....

वो नदी का कंकड़ था.... बह गया.... 



मैं किनारा..... वहीं का वहीं रह गया....

मेरे पास आनें को..... बहुत छटपटाता है वो.....



बस वो..... बता देता है.... और मैं..... ये कह नहीं पाता.....

ये ख़ामोश आँखें..... चुभती हैं मुझे.....



यूँ लबों को अपनें ......एकदम से..... आराम दिया न करो....

सम्भल के चलना.... यहाँ लोग बुरे हैं.....



कहीं किसी मोढ़ पर..... दिल लुट गया... तो रोना होगा....

वसीयत कर दी आज हमनें.... दिल की तिजोरी की....



हम रहें न रहें..... ये जायदाद उसकी होगी......

वक़्त नहीं है यहाँ.... आदमीं के पास....



पर..... किसी के ग़म में शरीक होंना.... इबादत से कम नहीं होता

उसे मुस्कुरानें की...... लत है.... शायद.....



मैं इसी लत का....... मारा लगता हूँ...

मैं जूआ खेलता तो नहीं..... चलो मान लिया....



इश्क़ किया ना तुमसे..... ये उससे कम तो नहीँ शायद.....

बहुत देखे चराग़.... हवाओं में बुझते.. लेक़िन.....



कोई चराग़ जो हवा को मात दे... ऐसा कोई मिला ही नहीं 'मैकू'

पसन्द है हरकतें... सब उसकी हमको…



पर.... किसी और के कांधे पे हाँथ ऱखना उसका.... जला देता है मुझे…

बद्दुआएं देती होंगी वफ़ाएँ.... आसमानों से मुझे....



मैनें किसी और के ख़ातिर... उसे भी छोड़ दिया आज...

ज़ख्म .......इतनें गहरे थे नहीं मेरे.....



जो हाल पूछनें आये..... कुछ नमक लेके आये थे....

हर बात का ज़वाब होता था उसके पास.....



वो आख़िरी ज़वाब जो मिल जाता उससे.... यूँ अकेला..... मैं रों रहा नहीं होता.....

बड़ी देर लग गई... यूँ जानें औऱ आनें में.....



एक अरसे से मैं... उसके इंतज़ार में हूँ

साथ चलो ......कुछ दूर तक ही सही.....



वादा तो जिंदगी भर.... साथ निभांनें का था ना...

अब कौन बताए हमें.... की वो बेवफ़ा है या नहीं.....



मैंनें इश्क़ का मारा.... ढूँढा बहुत... कोई जिंदा मिला ही नहीं....

एक अरसे से हमें मोहब्ब्त है..... महादेव से.....


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बाक़ी सबसे करनें का अंजाम ......मैनें देख लिया है....

दौर-ए-आशिक़ी से वो.... गुज़र रहा है आजकल.....



उसके चेहरे के नूर को देखा मैनें.... वो पहली मोहब्ब्त का था 'मैकू'

चलता हूँ कहीं और.......बहुत दूर .... इस महफ़िल-ए-आशिक़ी से.....'मैकू'.....



मैं मनहूस....... इस जगह के क़ाबिल नहीं हूँ....

निकाल के उसनें कंकड़ सा....फेंक दिया अपनी ज़िंदगी से…



वो तो भोले-शंकर मिल गए..... हक़ीक़त-ए-इश्क़ से मेरा आमना-सामना हो गया....

शिद्दत से निभानें... की हर कोशिश कर के देख लिया...



पर...... जो घड़ा टूटना होता है... कितना भी संभालो.... टूट ही जाता है...

इतना..... क्यों सताते हो तुम मुझको....

मैसेज का ज़वाब.... ज़रा जल्दी दिया करो ना....




न जानें क्यों लोग..... इश्क़ को बुरा कहते हैं....

किसी को तड़प के चाहना भी कहीं....... गुनाह होता है ...??



अब मुझे...... अंधेरों में रहना ही बेहतर लगता है

किसी मुसाफ़िर पे इतना भरोसा.... अच्छा नहीं 'मैकू'.....



लोग यहाँ हार पहनानें के बहानें.... गला काट देते हैं.....

उसके इज़हार को मना करना.... मजबूरी थी मेरी....

उससे इश्क़ करके.... छोड़ देना.... हमसे हो नहीं पाएगा.....



शायरी लब्जों का खेल है...... और कुछ नहीं....

जो वाह वाह मिल जाए.... तो सुकून मिलता है....


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दोस्ती से ..... मेरा मन भरा तो नहीं है....

पर कट्टर दुश्मनी वाले लोग भी...... मुझे अच्छे लगते हैं.....



जिन्होंने तुझे हक़ीकत में देखा भी नहीं है.....

पढ़कर मेरी शायरी.... लोग समझ जाते हैं कि तू कैसी होगी....



आसान नहीं है लब्ज़ों का बवंडर बुनना....

हज़ारों रिश्ते .... शब्दों के हर फेर से बिखर जाते हैं....



कभी मिलनें का इरादा हो तो बुला लेनां...

ख़ुदा क़सम..... जिंदगी तक गिरवी रखनी पड़े .... तो भी आएंगे जरूर



राम रहीम की लड़ाईयां..... हमनें तो नहीं देखी.....

ये अखबार वाले लोग..... किस दुनियाँ में जीते हैं.....



किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत न थी.... न माँगा...

'मैकू'... इश्क़ नें हमें...... भिखारी बना के छोड़ दिया....



सुनानें लगा वो एक एक राज़ अपनी ज़िंदगी का जब....

तब पता चला कि.....

बुराइयाँ सब में होती हैं.... बस उनसे लड़ना आना चहिए......

वो नहीं रहा..... तो भी मैं सज़ा काटूँगा....



कोई औऱ है.... जो मुफ्त में सज़ा दे सके हमें....

रंगतों की बात करते करते... वो नाटक पे उतर आया है.....

नए ज़माने के दिखानें के लिए 'मैकू'.... वो सड़क पे नंगा नाचनें में भी परहेज़ नहीं करता…



फ़रिश्तों से कह दो... हमें बक्श देंगे..

उसे गर.. दोजख मिला होगा ...तो मुझे भी.... रहना वही मंजूर होगा... 



यकीन मानों... भरोसा करोगे...

तो....... रोना पड़ेगा....



लोगों को लगता है.... उनकी हर बात सही होगी और मानी जाए.....

बशर्ते... मानना ये ग़ैरों को होगा... उनके अपनों को नहीं....



ये बरसात इतनीं कम क्यों हो रही..... 

किसी ग़रीब की हालत देख की भी मालिक... तेरा दिल नहीं बदलता…



ज़मानें को खुश करनें में ..... हम इतनें मशगूल हो गए हैं... 

हर शख्स नें दिल भर के .... ज़ख़्म दिया हमको.....



कभी मन हो...... तो हमें याद ....कर लिया करो.....

दूध देंनें वाली गाय गर लात मार दे... तो उसे मार नहीं देते...



वहम का बीमारी थी उसको....

इलाज़ इस चीज़ का..... मैं कर ही नहीं पाया....



मुसाफ़िर हूँ...... मैं .. राह-ए-तकलीफ़ का....

तुम भी चाहो... तो एक पत्थर.... मार ही लो....



खाबों में भरम रखना..... आसान काम है.....

 गर जिंदगी में मिलो.... तो अपना मान लेंगे हम



ख़ैर..... देर तो हो गई है....

पर अब भी तुम चाहो... तो मरनें तक... साथ दे सकता हूँ मैं...



तकलीफ ये नहीं कि वो किसी औऱ को चाहता है.....

बात ये है.... की उसे लगता है... मैं इश्क़ नहीं करता उससे



इश्क़ नहीं करते हमसे.... चलो कोई बात नहीं...

पर जो हर काम पे बुला लेते हो... ये भी तो अच्छी बात नहीं ना



मैं आज नाराज़ था तुमसे.....

तुम्हारा फ़ोन आया..... मैं दौड़ पड़ा बात करनें के लिए...



वो मानती नहीं कि उसे इश्क़ है हमसे.....

पर.... अपनीं हर एक बात.... बताती है मुझसे....


ख़याल था कि तुमसे मोहब्ब्त.... कर लेनीं चाहिए......

सोचा तो ये एकतरफ़ा.... रास्ता समझ आया....



मेरा नाम लेकर ......मुझे.... याद करते हैं तुम्हारे दोस्त....

अब इससे ज़्यादा..... इश्क़ क्या निभायें..... कह दो तो मर जाएँ ....



चिलचिलाती गर्मी की दोपहर था.... 

तुमको देखते ही.... हाल-ए-मौसम में... ठंढगी आ गयी...

उसनें कहीं .....किसी और से कहा..... वो मुझे अच्छे से जानता है..... इसीलए चला गया...


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उसी ग़ैर..... ने आकर हमसे कहा.....की वो मेरे लायक है ही नहीँ....

बेशक....... वो बेवफ़ा नहीं था.... शायद.... 

मुमकिन है..... उसे..... हमसे ज्यादा.... कोई चाहता होगा...

बड़ी आसानी से..... मोहब्ब्त करनें लग गया था उससे....



हमें मालूम नहीं था.... ये रस्ता इतना मुश्किल होगा....

बहरहाल.... वो बेहद खुश है जिंदगी.....



मेरी मौत से .... उसे क्या ही फ़र्क पड़ता होगा....

बाइस बार उसनें मुझे थप्पड़ मारा..... सरे बाजार में......



मैं लड़का था.... घर की जिम्मेदारी थी.. महिला की इज़्ज़त थी.... 

बस चुपचाप..... जिम्मेदारी निभानें के चक्कर में...... इसे भी सह लिया



कोई मौत बुला देता तो ..... अच्छा होता.....

मैं खुदखुशी कर लूँ.... इतना भी क़ाबिल नहीं शायद.....



चाय पे बुलाया है उसनें..... कल दोपहर....

मुझे इश्क़ है..... उससे भी है और चाय से भी....


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क्या करूँ.... चाय पियूँ या उसे निहारूँ... 

आप बताएँ.... इश्क़ पियूँ या इश्क़ निभाऊं....


उसके..... कशिश-ए-नज़र.... का क्या ही कहें.... 

उसे देखते ही.... मैं दुनियां.... भूल जाता हूँ....



सहारे की बात सुनते-सुनते..... मैं उसके टुकड़ों पे ......जीनें लग गया था....

सबक मिला... तो पता चला.... की...मौत के वक़्त तो अपनी साँसें भी साथ छोड़ देती हैं.... ग़ैरों का तो क्या ही कहना...



चल.......... हमें नहीं आता इश्क़ करना.....

तू इतना क़ाबिल था.... तो समझा देता.... चला नहीं जाता...



मेरे सूखे अस्कों को .... ये समझ नही आता....

की ये आँसू... ग़ैरों के लिए बहा देनें से .... वो अपनें नहीं होंगे.....



ख़ाबो की दुनियाँ में जियें... ये बेहतर होगा..... 

हक़ीक़त के तार्रुफ़ से ही..... मैं काँप गया हूँ...



कहीं औऱ .....किसी गैर के साथ हो.... तो बता दो हमें.....

हाँ....बेइंतेहा इश्क़ है जरूर तुमसे..... पर आत्मसम्मान बेचकर... हमसे हो नहीं पाएगा…



ज़हन में है.... तुम्हारी एक एक बात अबतक.....

वो भूल जानें का नाटक भी हमसे...... हो नहीं पाता…



कहीं किसी बात से.... चोट लग गई हमको....

वो रिश्ता जो भी था.... उसके बाद टिक नहीं पाया....

 

 

खबरदार किया था..... यारों नें की इश्क़ नहीं करना.....

पर उसका नशा ही ऐसा चढ़ा.... सब कुछ बदल गया



ये वक़्त रुक जाता.... तो.... अच्छा होता.....

ये छुप छुपाकर.... इतनें दिन बाद जो मिले हो.... जी भर के इश्क़ निभा लेते तुमसे..



यहाँ पत्थरों में दरार ..... डाल देते हैं लोग....

और उसे लगता है... इश्क़ हमारा... सबको पसंद है....



दरख़्त पर बैठे .....आज एक ख़याल आया....

अगर तुम न होते.... तो ये जिंदगी.... कैसी होती.... ??

किस क़दर हमें वो चाहिए.... कैसे बयाँ करें 'मैकू'.... 

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जैसे .....तड़पते घाव को... मरहम की तलब होती.... 

जैसे..... चिलचिलाती धूप में.... छाया की ललक होती है...

जैसे .....कड़कड़ाती ठंड में.... कड़कती चाय का नशा होता है....

जैसे.... दोस्तों के बीच में..... गाली का मज़ा होता है....

जैसे... जिश्मों में... रूहों का होना... होता है....



बस ऐसा ही एक ख़ाब अधूरा है अभी....

मेरी हर खामोशी को... कमजोरी समझता है.....



इश्क़ कितना है उससे.... गर ये समझ जाए... तो बेहतर रहता

वो... बड़ा था.... बड़प्पन दिखाया उसनें...

वो दूसरा..... छोटा था.... ये उसकी हरकतों ने..... बतला दिया सबको....

क़ायदे से देखें ....तो और बात है.... 

वरना इश्क़ को तो लोग... जिस्मानी समझते ही होंगे...


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