हिंदी शायरी | Hindi shayari | breakup shayari photos | best shayari in Hindi | letest shayari.
हिंदी शायरी 💕💕💕
इतना आसान है क्या... सब कुछ भुला देना.....
अगर ऐसा है... तो 'मैकू'... मैं उसे भूल जाना चाहता हूँ... बिल्कुल
तैरती उन लाशों से....... जिस दिन रूबरू हुए हम....
बस... उसी दिन से...... उसकी आँखों में उतरना... छोड़ दिया है
डूब जाना...... इतना भी मुश्किल नहीं 'मैकू'....
एक बार उतर के देखो ..... उसकी नज़रों के भँवर में....
दामन तो आज़कल.... ख़ुद वो औरों से अपना...... बचानें लगा है....
जो कभी कहता था.... आजकल पढ़े लिखे समझदार लोग हैं गवार थोड़ी.....
वो आया था..... हमसे.... रिश्ता तोड़नें के लिए…
उसे मोहब्ब्त हमीं से है.... बस अब वो किसी औऱ का है.... बताया उसनें...
उस रिश्ते में अब ऐसे..... मुक़ाम पे हम थे....
वो आँसू बहाता था तो भी.... हमें लगता था...... कोई चाल है इसमें....
ऐ ख़ुदा बस कर... अब इतनी भी सज़ा न दे.....
अभी तो टूटे हैं ..... कहीं ऐसा न हो कि टूट के बिखर जाएं हम....
तकलीफ़ जहाँ से है.. ईलाज़ भी..... वहीं क्यों नहीं करानें जाते...
ये इश्क़ है साहब.... गली चौराहों औऱ हस्पतालों में...... इसके हक़ीम नहीं मिला करते....
बड़ी आसानी से ..... भूलने ....भुलानें की बातें होती हैं.....
ये नए ज़मानें का इश्क़....... बेकार है क्या.....???
मेरे चेहरे के शिकन नही... हौसला देखो....
क़ामयाबी से हमें इश्क़ है.... उसे हमसे नफ़रत.... ये मोहब्ब्त का फ़लसफ़ा देखो...
मुझे बार बार ...... इधर आनें से रोका गया...
ये ग़रीबी की दीवार..... बड़ी मुश्किल से.... लाँघ पाया हूँ....
बड़ी आसानी से ...... मेरी हर बात.... समझ जाता था.....
मुझे लगता है ..... वो भी आशिक़ पुराना होगा....
दाँव पेच में..... मोहब्ब्त भी सियासत को मात देती है....
कभी देखा है.... मोहब्ब्त का हारा..... जिंदा तुमनें??
गुस्सैल आँखों से ही सही.... अब वो देखती है मुझे....
लगता है बर्फ़ उधर की.... पिघलनें लगी है... थोड़ी बहोत...
ये नक़ाब.... अब .... उतार क्यों नहीं देते....
दिलों को तोड़ना.... अल्लाह की इबादत से गुस्ताख़ी ही तो है....
ख़ैरियत पूछने वाले भी.... जानना... नहीं चाहते…
वो राह चलते आप मिल गए तो सोचा... तकल्लुफ़ कर लें...
जो भी शायरियाँ आपको पसंद आयें, कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिकिया जरूर लिखें।
इससे मेरा उत्साह बढ़ता है और आपका भी शायरी की दुनियाँ से लगाव बढ़ता है।❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
यूँ बेवज़ह ..... दिल की बात.... न कर ज़ामनें वाले...
मैनें देखा है... मोहब्ब्त चेहरों से हुआ करती है अक्सर
मर चुके हैं... पूरे के पूरे हम....
बस जिंदा है .....ज़मानें की नज़र में....
हम रह गए...... शराफत दिखानें में 'मैकू'....
सुना है किसी नें..... बदमाशियों से .....उसका दिल जीत लिया है...
हम नए नहीं हैं...... इस दरिया-ए-इश्क़ में....
पर.... हर किसी को.... यूँ ही सलाह देंनें का... अब मन नहीं करता....
मेरी नींद ...... पूरी नहीं हो रही आजकल.....
मसअला ये है..... तुमनें ख़ाबों में आना.... क्यों छोड़ दिया है...
मिले तुमसे..... एक अरसा हो गया है....
याद तुम्हारी बहुत आ रही है.... मौत पहले.... आ जाती तो अच्छा होता.....
हम तो तुझे...... बस देख़ना चाहते हैं यूँ ही....
तू बातें नहीं करती न कर.... पास में बैठ तो सकती है ना....
बहोत देखे होंगे तुमनें आशिक़ी करनें वाले.....
कसम से बता रहे... हमें जो है... उसे ही इश्क़ कहते हैं.....
तू इश्क़ कर ..... औरों से भी बहोत कर... हम ग़ैर हैं.... क्या ऐतराज़ करेंगे...
हम तो जितना कर सकेंगे इश्क़...... बस तुझी से करेंगे...
तू ज़रूरी है मेरी ज़िंदगी के लिए.... ये सोचना था मेरा.....
तू मेरी मौत का सामान भी है.... ये मैं अब ..... जान गया हूँ.....
हम बेगुनाह..... सुबूत पे सुबूत..... देते रह गए.....
वो क़ातिल.... यूँ ही..... बरी..... हो गया....
उसकी धड़कनों से...... लगा इश्क़ का पता....
जुबां तो अब भी... मुकर जाया करती है...
मुझे पसंद है .....उसका बोलते रहना.....
उसकी ख़ामोशी आँखें..... चुभन देती हैं..
बड़ी कोशिश की लोगों नें ....उसे.... दूर करनें की.....
इश्क़ हमें ऐसा है.... अब कोशिश नहीं साज़िश करनी होगी उन लोगों को
दिखावे के काम..... साहब घर पर कीजिये....
ये इश्क़ का काम...सरे आम नहीं होता...
दौर-ए-ज़मानें का भी.... ध्यान रखना पड़ता है.....
यहाँ पल्लू भी सरक जाए.... तो शरीफ़ शराफ़त छोड़ देते हैं....
मैं... निभाते निभाते ये रिश्ता .... अब टूट चुका हूँ.....
बेड़ियों में रहनें से.... मर जाना..... अच्छा होगा.....
सुना है..... मेरा नाम लेकर वो नींद... से चीख उठता है.....
मेरी ज़िंदगी तबाह करनें के बाद भी.... मैंने उसके लिए दुआ की आज.....
मुझे उम्मीद नहीं लोगों से.... वो मेरा दर्द समझें....
मुझे उम्मीद जिससे थी... उसी नें दर्द ये... तोहफ़े में दिया है.....
ये इश्क़ कोई तमाशा नहीं.... साजिश समझो.....
दिल.... दिमाग और समाज.... तीनों से मुक़ाबला है यहाँ....
उसकी बड़ी आँखें........ बड़ी.... गहरी निकली.....
नापते .....नापते... नापते...... मैं डूब गया....
तुझसे बातें करनी...... तो बहुत थी.....
तू सामनें जब आयी.... मुझे खमोशी ही बेहतर लगी....
ये मेरा ...तुम्हारा.... इसका .....उसका.... क्या करें हम.....
जो अपना था... वो रहा नहीं.... जो पराया है... उससे उम्मीद अब रही नहीं…
अक़्सर.... तेरी चौखट पर पहुचनें से पहले.....
मेरे क़दम ख़ुद-ब-ख़ुद.... तेरे ग़ुरूर तले दबकर..... लौट आते हैं.....
उसनें कहा..... मेरे जानें के बाद भी...अभी जिंदा हो क्या.....
जो बिना कुछ बोले.... एक वक़्त .....सब कुछ समझ जाया करता था.... वो मेरी हालत देखकर भी... मुझे जिंदा कह रहा.....
तो चल छोड़..... अब तक मुर्दा थे.... अब कोशिश करेंगे जिंदगी के लिए.....
और उतनी ही शिद्दत से करेंगे... जितनी तुझे रोकनें की करी थी....
वो मुझपे ही आजमाता है.....अपनी कलाकारी का हुनर...
जो कभी उसका झूठ पकड़ा जाए.... तो हँस देता है......
सुना है उसके शहर में..... नया हक़ीम आया है....
पता तो करो.... वो बेवफ़ाओं का ईलाज़ करता है क्या....??
वक़ालत वो करता था.... अपनी दोस्ती की... बहुत....
वक़्त आया तो मैनें भी.... असली तेवर... देख लिया है....
मुझे लगा नहीं था... की ये इतना चुभ जाएगी....
उसका फ़ोन काट देना.... बड़ी मुश्किल से सम्भला हमसे
उसे डूब जाना ही अच्छा लगा...... जिंदगी की नाव में....
बचानें वालों की कोई कमीं न थी... मझधार में भी.....
कहते हैं वो....... की हमनें बेवफ़ाई की थी......
मौत दे देते.... ये बेवफ़ाई का इलज़ाम.. हमसे सहा नहीं जाता.....
अक़्सर..... तन्हा रातों में जब नींद नहीं आती....
मन करता है.... बस तेरा साथ हो.. या तुझसे बात हो....
कमज़ोर नहीं था.... हारनें वाला....
जिगरा..... लोहे का चाहिए..... सौ बार हारनें के लिए....
मैं सोचता हूँ....इस ठुकराए जिसम को छोड़ दूँ क्या...??
रूहों को.... किसी की.... याद नहीं आती..... बस ये सोचकर.... मन बदल लेता हूँ मैं...
ये हुनर-ए-शायरी.... मुझे यूँ ही नहीं आया.....
दिल तोड़े जानें का 'मैकू'..... इसे... तोहफ़ा समझिए..
बरसात के मौसमों में.......अब मैं भीगता नहीं....
जो एक बूँद भी माथे पे गिरे.... उस बेवफ़ा की याद ..... चली आती है....
हुनर चाहिए.... मोहब्ब्त छुपानें के लिए.....
वरना मोहब्ब्त तो उससे.... एक अरसे से है मुझको.....
कौन था वो..... जो चला गया.....
रूह... जब ज़िसम से निकलती है..... मौत कुछ देर बाद आती है क्या....???
वो इश्क़ की बात.... सरेआम क़ुबूल करता है.....
मैं शरमाता हूँ.... वो मोहब्ब्त को ज़रुरी बताता है....
उस आईनें का क़ुसूर.... कुछ भी नही था.....
बस उसे उस लिए तोड़ डाला.....की वो मनहूस मेरी आँखों में...... किसी और को दिखलाता था हरदम....
अंतर था... उसके होनें औऱ चले जानें में...
उसका होना... सूकून था....
चले जाना रूह-ए-तड़प
किसी औऱ के घर की...... आबरू है वो....
अब मेरा इश्क़ नहीं.... मेरा अतीत है वो..
तोहफ़े में देंनें को .....लाया था चूड़ियाँ....
जब तू नहीं रहा .... उन्हें चौखट पे ही.... आज..... तोड़ दिया मैनें
अब घाव खानें की...... आदत सी हो गई है....
पर शाबास.... चोट तुमनें..... हमें बड़ी शिद्दत से दिया है....
सुनों..... इश्क़ बुरी बात..... होती होगी... शायद…
पर क्या करें..... हो गया है तुमसे.... बड़ी मुद्दत से हमको....
मेरे कमरे में बिखरी..... किताबों से... उसे नफ़रत सी थी.....
ये ही तो हैं..... जो मेरे जिंदा होनें की वजह हैं आज....
ख़ैर..... वो वक़्त का घाव था....
वक़्त के साथ.... भर जाएगा
ये आज की बारिश नें तो कमाल कर दिया....
मैं उससे मिल के रोया.... औऱ बिना उसके जानें बारिश नें अपना काम कर दिया
उसे लगता है मोहब्ब्त में.... इज़हार ज़रूरी होता है....
जहाँ इश्क़ हो ....वहाँ बताना ज़रूरी है.... ऐसा ज़रूरी तो नहीं
ख़ैर.... उसकी बात क्या ही करें....
जिसकी वजह से हर रात.... ज़हर की तरह पीनी पड़ती है हमें.....
ये कैसे फासले हैं..... तेरे मेरे दरमिंयाँ...
मुझसे करे न करे इश्क़...... तू मुझे आज़तक ......कभी दूर लगा ही नहीं....
मेरे मोहल्ले में रहता है वो 'मैकू'....
चार सौ मीटर पास है..... और ......दूरी.....??
अपनों की वज़ह से आप जितनी भी मान लें....
समन्दर ख़ामोश हो तो भी...... ताक़त की आज़माईश नहीं करते.....
वो लहरों के दम पर.... हुकूमतों को रौंद सकता है....
न देख उस तरफ़.... वो गद्दार लोग हैं…
जिन्होंने तुझे छोड़ दिया..... उन्हें पानें की चाहत.... कमजोरी है तेरी....
उसका आना और जाना.... बादलों की तरह है 'मैकू'...
आता तो है.... जानें कि बड़ी जल्दी..... के साथ मगर....
वो समंदर में उतरा..... और एक मोती ले के लौट आया....
और... वो बेवकूफ़ समझता है.... उसनें खज़ाना खोज लिया...
लोगों को पसंद नहीं है....... उसका गुस्सा करना....
मैं सच बताऊँ.... मुझे वो क़यामत लगती है..... गुस्से सी शकल में...
सुना है वो मुझे छोड़ जानें कि बात करता है.....
हमें भी आजमाना है.... की रूह जानें के बाद भी जिसम जिंदा रह पाएगा...?
मौत के हथियार.... बहुत आपनें ..... देखे होंगे..
चलती फ़िरती मौत .....देखनें का मन हो.... तो आइये मेरे शहर..
रूबरू कराना है.... हमें नए...... ख़ुद को...... पुरानें.... ख़ुद से...
उसे पानें की चाहत में... बेशरम हो गए हैं हम.....
एक बेहतरीन...... दोस्ती का रिश्ता.....
बस...... गले लगानें के ढँग से.... बिगड़ गया सारा....
इस मर्ज़ की...... दवा कोई दे दे…
हमसे ये ज़िन्दगी भी..... अब थक चुकी है....
मैं अपनी सोच से भी... ज्यादा आशिक़..... औऱ ज़िद्दी निकला.....
वो ....घाव पे घाव देता चला गया.... मैं उसे अपना मनाकर... इश्क़ करता चला गया...
Comments
Post a Comment