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बेहतरीन हिंदी शायरी 💕💕💕:
क़ायदे से देखें ....तो और बात है....
वरना इश्क़ को तो लोग... जिस्मानी समझते ही होंगे...
बात ये है कि .....वो पसंद है मुझे....
ख़ैर....मसअला ये है.. की मुझे मिल नहीं सकता
शायद.... उसका मुस्कुराना एक ख़ास वज़ह है....
मेरे एकतरफ़ा इश्क़..... करनें का....
वज़ह ये नहीं कि मैं बुरा हूँ 'मैकू'....
मसअला ये है .....कि उसे मैं पसंद ही नहीं शायद.....
तू वो सख़्श नहीं जिससे दिल्लगी की जाए…
ये अच्छा है कि मैं.... तूझसे... अब दूर ही रहूँ
वो जान लेनें की दवा है ना... वो ज़हर... अरे हाँ.... वही इश्क़.......
तड़प के मरना हो.....तो आज़माईश जरूर कीजियेगा....
चलो कुछ तो मुक़म्मल हुआ.... इस जहाँ में....
इश्क़ न हुआ तो क्या हुआ..... फासले तो हुए ना
यूँ हर रोज़ वो दरिया की तरह सामनें से गुज़र जाता है.....
यूँ ही हर रोज़.... बिना कुछ कहे........ मैं यहीं... खड़ा रहता हूँ..
मजदूरी की मजदूरी के..... हर पाई का हिसाब लेता है.....
वो मग़रूर इतना है दौलत कमानें में.... औलादों को समय नहीं.....सिर्फ़.... पैसा देता है...
रँजिशें हैं हमसे.... चपलूशों की 'मैकू'.....
मैनें बहोत पहले ही... सही को सही..... कहना सीख लिया था...
एक समंदर आया था आज..... एक क़तरे के पास...
कहनें लगा.... प्यास लगी है... पानी मिलेगा...??
वो बेवकूफ़ कारीगर..... उस पत्थर को घिस.... ख़ुदा को .....खुश करनें में लगा है....
बूढ़ी माँ... अकेले गाँव में... घुट घुट के रहती है....
आशिक़ों की लाइन ....... तो बड़ी लंबी है यहाँ....
पर सुना है मेरा भोला... आख़िरी वाले तक की...... सुनवाई करता है....
बेचारे लोग..... कमानें गाँव से..... शहर आये थे...
इन शहरों नें इन्हें..... ज़मीदार से नौकर बना दिया...
बात बात पे गुस्सा हो जाए.... ऐसी आदत नहीं उसकी....
उसे..... इश्क़ ..... शायद हमसे... हज़ार गुना है....
मेरा मन नहीं करता कि मैं उसे अब मना लाऊँ...
गर ये नाटक-ए-ज़िन्दगी इश्क़ है..... तो हम अकेले अच्छे....
वक़्त, रिश्तों औऱ एहसानों की है ज़िन्दगी....
लोग बेवज़ह.... इन्सानों को दोष देते हैं....
हम मजबूरी में काम करते रहे.....हर वक़्त...
जब लौट के आये..... कोई था ही नहीं हमारा
सुना है इश्क़ था उसको मुझसे....
मन बदल गया..... या वक़्त..... ज़रा पता तो चलो....
क़िस्मत के सहारे वो..... बैठा है अभी तक.......
कोई और ....मेहनत के दम से.... मंजिल को पा गया..
दरिया का तैराक.... समंदरों से डरता जरूर है....
मोतियों को अक़्सर वो गहरे पानीं से पाता है....
तारीफों का दौर है..... ज़रा सम्भल के सच बोलिये....
रिश्ते चपलूशों के ही....... ज़्यादा बना करते हैं शहर में...
मुझे कहना ही नहीं आया कि मैं चाहता हूँ उसे.....
ये बात और है कि उसे भरम है.... की वो चेहरा पढ़ सकता है...
थका नहीं .... बस रुका हूँ मैं.....
मैं समंदर हूँ.... मौज में आया तो शहरों की भी ख़ैर नहीं होती.....
'मैकू' मैं ही...... हर बार.... झूठ क्यों बोलूँ.....
गर उसे मेरी पहवाह है .. तो एक और बार हाल क्यों नहीं पूछा...
रहम कर ऐ ख़ुदा..... इन नादानों पर थोड़ा....
इन्हें इश्क़ और ज़िस्म...... एक सा ही लगता है....
बडी चालाकियाँ.... खेली उसनें....
मैं हारता गया..... हारता गया.... और आख़िरी दाँव.... मेरा हुआ...
न मानता वो..... तो भी मैं उसी से इश्क़ करता शायद....
दिल रखनें के लिए.... हाँ बोलकर... फिर ना बोलना... बहुत सलीके से चुभा है मुझे....
वो ख़ुद को .....मुझसे जोड़ने में लगा रहता है... रात-दिन....
मैं मजबूर हूँ...... कमानें के लिए..... अकेले शहर आया हूँ
नसीहतें बहुतों नें ....बहुत कुछ दी हमको......
पर .... इश्क़ का मारा था मैं.... बेवकूफ़ी की हद तक जाना चाहता हूँ अब
ऐसे न देख इश्क़-ए-तिरंगे को...... चूमते हुए मुझे.....
मैंने बहुत शौख से.... इस इश्क़ को .......ज़हन में पाल रक्खा है....
बड़ी क़ातिल होगी....... वो अदाकरी में...... 'मैकू'.....
सुना है दीदार-ए-हुस्न के लिये..... मोहल्ले में रोज़..... लाइनें लग जाती हैं....
ज़हन में.....बैसाखियों का सहारा लेकर चलनें वाले.....
सुना है...... दूसरों को.... ज्ञान .......बहुत देते हैं....
हर लफ्ज़ में.... एक्सीडेंट का बाद ....उसनें मेरा नाम लिया.....
गर इसे मोहब्ब्त नहीं कहते...... तो ख़ाक मोहब्ब्त होगी...
तुम्हारे नाम का एक पत्थर.... मैनें दरिया के बीच... फेंका.....
'मैकू'... इत्तेफ़ाक़ देखिए..... वो हमारे रिश्ते की तरह...ही....डूब गया…
ख़ाब दिखाकर जिंदगी छीन लेना....
क्या इसकी भी कोई... सज़ा तय की गई है कानून में...
कोई हमें भी आशिक़ पुराना कह दे..... तो अच्छा लगता.....
इश्क़ तो हमनें भी.... बेहिसाब किया था एक वक्त.....
शायद मौत तो आसान चीज़ होगी...... उसके सामनें....
इश्क़ में तड़प के जब जीना होता है..... आत्मा रो देती है साहब
उसे क़दर नहीं थी मेरी.... न पहले और..... न आज.....
बस अब मैं ख़ुद की क़दर... करनें लग गया हूँ.... सबसे पहले
बेहिसाब तालाबों का..... अनुभव होगा शायद उसको... .....
समंदरों की गहराई का .....फ़िर भी.... उसे अंदाज़ा नहीं होगा...
रातों को जागना ही इश्क़ नहीं होता.....
हर ख़ाब सिर्फ उसी के साथ देखना.... हाँ शायद.... इश्क़ होता हो....
सोचा ही नहीं कि जिंदगी....... इस मोढ़ पर भी होगी कभी....
ज़रूरत पूरी दुनियाँ में सिर्फ़ किसी एक कि होगी.... और वो एक कोई होगा ही नहीं.....
सुना था कि जंग जीतनें वाला सब कुछ पा लेता है.....
अभी जल्दी ही देखा है एक विजेता को.... अपनों के खोनें का विलाप करते हुए
सरकार है वो हमारी ज़मीनों के....
बोझ के तले दबे हम... उनके टुकड़ों पी जीते हैं.....
हम खेत को बोते जरूर हैं 'मैकू'.....
हमारे परिवार को बजी उसनें अपनानें में आजतक कोई कमीं नहीं रक्खी...
अगर झूठ बोलनें का .....इतना ही शौख है उसे....
तो इश्क़ करना भी साहब...... उसके लिए मना होना चाहिए
गली से गुज़र भर जाए वो बस एक बार.....
पूरे मोहल्ले में..... जिंदगी दौड़ पड़ती है…
काश की तू एक.... आसान सवाल होता.....
मैं जल्दी से जवाब देकर.... तेरे साथ हो जाता .....
शायद अब ... तेरी अदाओं में वो जादू नहीं रहा....
आज तुझे देखकर भी..... तुझसे बात करनें का मन नहीं हुआ....
बड़ी कमियाँ निकाली उसनें.... मेरे किरदार में 'मैकू'......
बात जब उसके..... ख़ुद में झाँकनें की हुई.....वो मुस्कुरा के चल पड़ा...
सुना है वो मुझे कल..... नक़ाब उठा के उसी टपरी पे ढूंढ रहा था.....
शायद उसे मालूम नहीं कि.... इश्क़ में भी.... एक सीमा होती है... बेइज़्ज़त होनें की....
टहल के देख लिया...... हमनें भी तुम्हारा शहर 'मैकू'........
न हवा अच्छी, न पानी.... औऱ तो औऱ .... इंसानियत भी यहाँ कुछ ख़ास दिखी नहीं हमें....
शराब के बोतल में ख़ुद को डुबा के पी है....
दर्द कुछ नहीं है... पर किसी और का ग़म सोच के ही... शराब पी है....
चाहता तो .... उसके भी तलबगार बहुत थे....
पर..... उसके ग़ुरूर-ए-रईसी नें .....उसे मोहल्ले में.... बेकदर कर दिया है...
वो बड़े शौख से कहता था 'जान' मुझको....
'जान' तो आज़कल भी कहा जाता है..... अफ़सोस की मुझे नहीं....
उसका नाम सुनते ही.... चमक जाती थी मेरी आँखें....
अब उसका नाम सुनना..... कड़वा लगता है मुझे.....
शराब से जबतक.... हमारी इश्कबाज़ी चलती रहेगी....
यकीन मानिए.... हर पल मौत को मात देता रहूँगा मैं...
मैंने मान लिया कि वो मेरा नहीं हुआ.....
इश्क़ तो है... हमेशा रहेगा... पर मैं ये बेवकूफ़ी नहीं करूंगा कि मर जाऊँ.....
उसे ..... मेरी खबर रखनें में बड़ी दिलचस्पी होती है.....
फ़िकर हमें इस बात की है.... गर मोहब्ब्त हो गई... तो गड़बड़ हो जाएगी....
बेशक ..... हमें उसका साथ चाहिए उमर भर के लिए.....
औऱ शर्त ये है.... की उसे भी मोहब्ब्त उतनी ही हो.... जितनी मुझे है....
महफ़िल में पगलपनें की ...... परिभाषा पूछी किसीनें... ....
मैनें "उसे पाना" कहा और चल दिया... बोतल लेकर...
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